हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने चरखी दादरी से पूर्व जेलर सुनील सांगवान को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। सुनील सांगवान सुर्खियों में हैं क्योंकि उनके जेल अधीक्षक के कार्यकाल के दौरान गुरमीत राम रहीम को छह बार पैरोल या फरलो मिली थी।
गुरमीत राम रहीम और सुनील सांगवान का जुड़ाव
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम, जो बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद रोहतक की सुनारिया जेल में सजा काट रहे हैं, को 2017 में सजा सुनाई गई थी। उस समय, सुनील सांगवान रोहतक जेल के जेलर थे। उनके कार्यकाल के दौरान, राम रहीम को कई बार पैरोल या फरलो पर रिहा किया गया। इनमें से प्रमुख रिहाई के अवसर थे:
- 24 अक्टूबर 2020 को एक दिन की आपातकालीन पैरोल
- 21 मई 2021 को एक दिन की आपातकालीन पैरोल
- 7 से 28 फरवरी 2022 तक 21 दिन की फरलो (पंजाब विधानसभा चुनाव के पहले)
- 17 जून से 16 जुलाई 2022 तक 30 दिन की पैरोल (हरियाणा नगर निगम चुनाव के पहले)
- 15 अक्टूबर से 25 नवंबर 2022 तक 40 दिन की पैरोल (आदमपुर विधानसभा उपचुनाव के पहले)
- 21 जनवरी से 3 मार्च 2023 तक 40 दिन की पैरोल
बीजेपी में शामिल होने की यात्रा
सुनील सांगवान ने हाल ही में वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) लेकर जेल अधीक्षक का पद छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। वे पहले गुरुग्राम की भोंडसी जेल में बतौर जेलर कार्यरत थे और इसके पहले पांच साल तक रोहतक जेल में अधीक्षक के तौर पर काम कर चुके थे।
बीजेपी ने सुनील सांगवान को चरखी दादरी से उम्मीदवार घोषित करने की प्रक्रिया तेज कर दी थी। हरियाणा सरकार ने 1 सितंबर को गुरुग्राम जिला जेल के अधीक्षक पद से उनके वीआरएस आवेदन को मंजूरी दी थी।
राजनीतिक विरासत और परिवार का प्रभाव
सुनील सांगवान के पिता, सतपाल सांगवान, हरियाणा सरकार में मंत्री रह चुके हैं और वे भी हाल ही में जेजेपी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। सुनील सांगवान का राजनीति में आना उनके पिता की बढ़ती उम्र और बीजेपी की एक युवा जाट नेता की तलाश का परिणाम है, जो चरखी दादरी में पार्टी के लिए समर्थन जुटा सके।
बीजेपी की चुनावी रणनीति
बीजेपी ने 2019 के विधानसभा चुनाव में बबीता फोगाट को चरखी दादरी से टिकट दिया था, लेकिन वे तीसरे स्थान पर रहीं। इस बार पार्टी ने सुनील सांगवान को मैदान में उतारकर अपने चुनावी समीकरण को बदलने की कोशिश की है, ताकि जाट समुदाय के वोट और स्थानीय समर्थन हासिल किया जा सके।
इस प्रकार, सुनील सांगवान के राजनीति में प्रवेश के साथ-साथ उनका पूर्व जेल अधीक्षक के रूप में विवादास्पद रिकॉर्ड भी चर्चा का विषय बना हुआ है।